कल 21 जून को वैश्विक स्तर पर अंतरराष्ट्रीय योग दिवस का पालन किया गया। 175 से अधिक देशों ने योग दिवस का अपने-अपने तरीके से पालन किया। यह भारतीय संस्कृति और भारत की सौम्य शक्ति जिसे प्रचलित रूप से साॅफ्ट पावर कहते हैं का वैश्विक विस्तार है। भारत की शक्ति ‘सर्वे भवन्तु सुखिन:’ के लिए होती है। इसी समय में एक और अच्छी और आशा जगाती खबर चर्चा में है। जब भी लोकतंत्र के उद्भव की बात होती है, तो हमारे सामने अक्सर ग्रीस और रोम जैसे पाश्चात्य उदाहरण सामने आते हैं। क्योंकि विमर्श ही ऐसा स्थापित किया गया है। परंतु ऐतिहासिक तथ्य है कि भारत ने विश्व को पहला गणराज्य दिया। बिहार की ऐतिहासिक धरती, इस वैश्विक विमर्श में अपनी प्राचीन भूमिका के साथ पुनः उभरती दिखाई दे रही है। विश्व का पहला लोकतांत्रिक गणराज्य, लिच्छिवी गणराज्य था। आज बिहार डिजिटल लोकतंत्र की क्रांति का साक्षी बन रहा है। बिहार द्वारा एक शहरी निकाय चुनाव में ई-वोटिंग प्रणाली को अपनाने का निर्णय न केवल एक तकनीकी पहल है, बल्कि भारतीय लोकतंत्र के भविष्य की दिशा तय करने वाला ऐतिहासिक कदम भी है।
डिजिटल लोकतंत्र का मूल उद्देश्य जनसंपर्क और शासन के मध्य की दूरी को कम करना है। यह केवल एक तकनीकी हस्तक्षेप नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी, समावेशी और उत्तरदायी बनाने का प्रयास है। ई-वोटिंग, डिजिटल जनसुनवाई, नीति निर्धारण में ऑनलाइन भागीदारी, और सरकारी सेवाओं की डिजिटल पहुंच, ये सभी डिजिटल लोकतंत्र के प्रमुख स्तंभ हैं।
बिहार की यह पहल दूरदराज़ क्षेत्रों के नागरिकों, दिव्यांगों, वरिष्ठ नागरिकों, गर्भवती महिलाओं, और प्रवासी मजदूरों जैसे वंचित वर्गों को लोकतांत्रिक प्रक्रिया में भाग लेने का नया अवसर देगी। इससे न केवल मतदान प्रतिशत बढ़ेगा, बल्कि लोकतंत्र का दायरा भी विस्तार पाएगा। हालांकि इसे अभी प्रायोगिक स्तर पर ही देखना चाहिए।
ई-वोटिंग तकनीक से जुड़े नवाचार, जैसे बायोमेट्रिक सत्यापन, डेटा एन्क्रिप्शन और ब्लॉकचेन आधारित सुरक्षा, चुनाव प्रणाली की पारदर्शिता और सुरक्षा को कई गुना बढ़ा सकते हैं। इससे न केवल मानव श्रम और समय की बचत होगी, बल्कि पर्यावरणीय दृष्टिकोण से भी यह एक स्वागतयोग्य परिवर्तन है क्योंकि यह प्रणाली कागजरहित होगी।
साथ ही, डिजिटल लोकतंत्र केवल चुनाव तक सीमित नहीं है। बजट पर ऑनलाइन सुझाव, नीतियों पर जनमत, और सोशल मीडिया के माध्यम से सीधा संवाद, ये सभी शासन और जनता के बीच की दूरी को कम कर रहे हैं। इससे जनसंवाद अधिक प्रभावी और तीव्र हो गया है, जो लोकतंत्र की आत्मा के अनुरूप है। आज लोकसभा और राज्यसभा की चर्चा, बहस, कार्यवाही देश की आमजनता देख रही है। इसने जनप्रतिनिधियों को भी और अधिक सजग और जवाबदेह होने के लिए प्रेरित और प्रतिबद्ध किया है।
जहाँ एक ओर डिजिटल लोकतंत्र उम्मीद की नई किरण बनकर उभरा है, वहीं इसके सामने अनेक चुनौतियाँ भी हैं। भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में डिजिटल खाई एक गंभीर समस्या है। तकनीकी साक्षरता, इंटरनेट की असमान पहुँच, और भाषा संबंधी बाधाएँ लोकतंत्र की समावेशिता को प्रभावित कर सकती हैं।
साथ ही, साइबर सुरक्षा एक अत्यंत संवेदनशील क्षेत्र है। यदि ई-वोटिंग प्रणाली में सेंध लगाई जाती है, तो इससे न केवल चुनाव की निष्पक्षता पर प्रश्नचिह्न लगेगा, बल्कि लोकतंत्र में जनता का भरोसा भी डगमगा सकता है। इसीलिए डिजिटल प्रणाली को सुरक्षा के सर्वोच्च मानकों से लैस करना आवश्यक है। ईवीएम पर विपक्षी दलों का रोना तो हमने सुना ही है। जब हारते हैं तो ईवीएम हैक और जब जीतते हैं तो अपने नेता का करिश्मा! ई वोटिंग से डिजिटल वोटिंग की तरफ बढ़ते देश के राजनीतिक दलों को खुले मन से और पूर्वाग्रह मुक्त हो डिजिटल लोकतंत्र के विभिन्न स्तंभों को सशक्त करना चाहिए।
सोशल मीडिया की क्षमताओं से हम सभी परिचित हैं। देश के प्रधानमंत्री से लेकर कल जन्में राजनीतिक दल के छुटभैय्ए नेता तक सभी सोशल मीडिया पर अपनी उपलब्धता और सक्रिय गतिविधियों को लेकर सजग हैं। सोशल मीडिया आज नीति विमर्श और राजनीतिक संवाद का एक मुख्य माध्यम बन गया है। यह जहां जनता को अपनी बात रखने का मंच देता है, वहीं फेक न्यूज़, ट्रोलिंग, और डिजिटल ध्रुवीकरण जैसे खतरे भी उत्पन्न करता है। लोकतंत्र की शुचिता के लिए आवश्यक है कि इन माध्यमों का प्रयोग जिम्मेदारी और सजगता के साथ किया जाए।
डिजिटल लोकतंत्र की सफलता का सबसे बड़ा आधार है जन-जागरूकता और डिजिटल साक्षरता। जब तक नागरिक स्वयं तकनीक का विवेकपूर्ण और जिम्मेदाराना प्रयोग नहीं करेंगे, तब तक यह बदलाव सतही ही रहेगा। स्कूलों, कॉलेजों और पंचायतों में डिजिटल नागरिकता को बढ़ावा देना, पाठ्यक्रम में शामिल करना और सामुदायिक स्तर पर प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करना समय की मांग है।
बिहार की ई-वोटिंग पहल ने पूरे देश को डिजिटल लोकतंत्र की संभावनाओं के प्रति सजग किया है। यह अवसर है मतदान को सुलभ, पारदर्शी और समावेशी बनाने का है। लेकिन यह जोखिम भी है तकनीकी असमानता और साइबर खतरों का। इसकी सफलता के लिए सजगता, सहभागिता और आधारभूत मजबूत तकनीकी संरचना का विकास आवश्यक है। यहां आवश्यकता है संतुलन की, सोच की। तकनीकी नवाचार के साथ-साथ सामाजिक तैयारी, संस्थागत ढाँचे का सुदृढ़ीकरण, और नागरिकों की भागीदारी सुनिश्चित करना होगा। तभी यह डिजिटल परिवर्तन लोकतंत्र को सशक्त करेगा, न कि उसे भ्रमित।
बिहार की यह पहल इतिहास और भविष्य के बीच एक सेतु के समान है। यह न केवल तकनीकी उन्नति का प्रतीक है, बल्कि लोकतंत्र में विश्वास, भागीदारी और न्याय के नए युग का संकेत भी है। डिजिटल लोकतंत्र की यह यात्रा चुनौतीपूर्ण अवश्य है, परंतु यदि इसे समग्र दृष्टिकोण और जन-सहभागिता के साथ अपनाया जाए, तो यह भारत को 21वीं सदी का लोकतांत्रिक वैश्विक नेतृत्व प्रदान कर सकता है। भारत का लोकतंत्र अब बैलट पेपर से यात्रा प्रारम्भ कर ई वोटिंग की सफलता के साथ डिजिटल वोटिंग युग में प्रवेश करने जा रहा है। यह परिवर्तन जितना क्रांतिकारी है, उतना ही जिम्मेदारीपूर्ण भी।