भारत में एक अदृश्य षड्यंत्र चल रहा है। यह युद्ध तो है पर इसका कोई युद्धघोष नहीं है। यह तो एक ऐसा सुनियोजित और मौन षड्यंत्र है जो भारत की आंतरिक स्थिरता, सांस्कृतिक पहचान और राष्ट्रीय सुरक्षा को भीतर से खोखला कर रहा है।यह सब कुछ उस "सद्भाव",और "अति-उदारतावादी सेक्युलरिज्म" के मुखौटे के पीछे छिपा हुआ है। पिछले सप्ताह सरकार ने भारत में रह रहे पाकिस्तानी नागरिकों के सभी लंबी अवधि वीजा को रद्द करने का आदेश दिया और उन्हें देश छोड़ने के लिए अल्पकालिक समयसीमा प्रदान की। यह आदेश महज़ प्रशासनिक निर्णय नहीं था, बल्कि यह एक गंभीर संकेत था। भारत के भीतर ही एक छिपा हुआ खतरा वर्षों से आकार ले रहा है, जिसे अब पहचानना और निष्क्रिय करना हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए अनिवार्य हो गया है।
दिल्ली में 5000 से अधिक पाकिस्तानी नागरिकों की उपस्थिति की पुष्टि इंटेलिजेंस ब्यूरो ने की है। इनमें बड़ी संख्या उन महिलाओं की है जिन्होंने भारतीय पुरुषों से विवाह किया और उनके बच्चे भारत में जन्म लेकर नागरिकता और सरकारी योजनाओं का लाभ उठा रहे हैं। यह स्थिति केवल मानवीय या वैवाहिक जुड़ाव नहीं, बल्कि सुनियोजित वैचारिक घुसपैठ का प्रारंभिक चरण प्रतीत होती है। सांसद निशिकांत दुबे के अनुसार, भारत में करीब पांच लाख पाकिस्तानी लड़कियाँ भारतीयों से विवाह कर रह रही हैं। यह केवल मानवीय-सम्बन्ध नहीं, बल्कि यह जनसांख्यिकीय युद्ध है, जिसे आईएसआई, तब्लीगी जमात और वैश्विक इस्लामी कट्टरपंथी नेटवर्कों द्वारा रणनीतिक रूप से संचालित किया जा रहा है। डेमोग्राफिक वॉरफ़ेयर, बिना गोली चलाए दुश्मन समाज की आत्मा को भीतर से कमजोरने का षड्यंत्र होता है। भारत के कानून और संविधान की उदारता का खुलकर दुरुपयोग किया जा रहा है। पाकिस्तानी शौहर की बीबी का भारत में बच्चे जनना और मुस्लिम जनसंख्या में लगातार वृद्धि इसी प्रक्रिया के हिस्से हैं।
यदि माता-पिता में से एक विदेशी, विशेषकर "शत्रु राष्ट्र" से है, तो मात्र भारत में जन्म लेना नागरिकता के लिए पर्याप्त नहीं हो सकता। फिर भी इन बच्चों को सरकारी दस्तावेज़ और योजनाएं मिल रही हैं। यह केवल प्रशासनिक चूक नहीं, बल्कि सुनियोजित नेटवर्क और मिलीभगत का प्रमाण है। इतने वर्षों तक ये लोग कैसे टिके रहे? किसने इन्हें आधार, राशन कार्ड और स्कूल में प्रवेश दिलाया? यह एक गहरी साजिश की चेतावनी है, जिसे अब भी अगर न समझा गया, तो परिणाम गंभीर होंगे।
यह "गुप्त राष्ट्र-निर्माण" का हिस्सा हो सकता है जिसमें नागरिकता के हथियार से एक वैकल्पिक राष्ट्रवाद को बढ़ावा दिया जा रहा है। जब-जब भारत में सीएए और एनआरसी जैसे कानून लाने की कोशिश हुई, तब-तब शाहीन बाग और जामिया जैसे आंदोलनों में संगठित भीड़ और अचानक उभरे नेतृत्व ने न केवल वैध कानूनों का विरोध किया, बल्कि भारत को इस्लामी राष्ट्र बनाने तक की घोषणाएं की गईं। अब यह प्रश्न केवल विधि व्यवस्था का नहीं, बल्कि भारत की सभ्यता, अस्मिता और अस्तित्व का है। क्या हम सच में नहीं देख पा रहे कि हमारी धैर्यशीलता अब हमारी कमजोरी में बदल रही है? क्या राष्ट्र की सीमाएं केवल भौगोलिक रेखाएं हैं, या उनका आधार सांस्कृतिक और वैचारिक अखंडता भी है? सरकार ने चेतावनी दी है कि जो पाकिस्तानी नागरिक वीजा की अवधि समाप्त होने के बाद भी भारत में रहेंगे, उन्हें तीन साल तक की जेल और ₹3 लाख तक का जुर्माना भुगतना पड़ेगा। लेकिन यह चेतावनी उन्हीं के लिए है जो कानून मानने वाले हों। जिनका उद्देश्य ही कानून को तोड़कर एक राष्ट्र में “मजहबी अतिक्रमण” करना हो, वे ऐसे जुर्मानों से नहीं रुकते।
आखिर कितनी देर तक हम यह सोचते रहेंगे कि “मनुष्य तो मनुष्य होता है”? यह वाक्य तब तक सुंदर है जब तक आप अपनी सुरक्षा की कीमत पर इसे न दोहराएं। एक सैनिक जब आतंकवादी को भी मानव समझने लगे, तो वह न न सीमाओं की रक्षा कर पाएगा, न अपनी। यही बात नागरिक समाज पर भी लागू होती है। भारत को केवल सीमाओं की नहीं, अपने भीतर पल रही विचारधारा की भी रक्षा करनी होगी। देश को बचाने के लिए राष्ट्रबोध और शत्रुबोध भी आवश्यक है।
जो बच्चे पाकिस्तानी मूल की महिलाओं से भारत में जन्म ले रहे हैं, क्या वे कभी इस मिट्टी से जुड़ेंगे? क्या उनका झुकाव भारत की संस्कृति, संविधान और सहिष्णुता की ओर होगा, या फिर वो उस विचारधारा के वाहक बनेंगे जो "2047 तक भारत को इस्लामी राष्ट्र" बनाने का सपना देखती है? यह सवाल मात्र अनुमान नहीं, कट्टरपंथी समूहों के दस्तावेज़ों और घोषणाओं की रणनीतियों से उठता है। बांग्लादेश में पाकिस्तानी सेना के द्वारा बांग्लादेशी महिलाओ से जबरन बच्चे पैदा करने की रणनीति का प्रतिफल पिछले वर्ष दुनिया ने देखा।
निर्वसन आवश्यक है लेकिन अल्पकालिक हल है। अगर इस षड्यंत्र को जड़ से न उखाड़ा गया, उनका नेटवर्क नहीं तोड़ा गया, उन अधिकारियों और स्थानीय दलालों को चिन्हित कर सज़ा नहीं मिली जिन्होंने इन्हें बसने में मदद की,तो यह प्रक्रिया फिर दोहराई जाएगी, और अगली बार पहचानने से पहले बहुत देर हो चुकी होगी। भारत की प्रशासनिक व्यवस्था को चाहिए कि वह एक "राष्ट्रीय जनसंख्या सत्यापन अभियान" चलाए, विशेषकर शहरी बस्तियों और सीमावर्ती क्षेत्रों में। सभी संदिग्ध नागरिकता दस्तावेजों की पुन: जांच की जाए। यह कोई इस्लाम विरोधी विमर्श नहीं है। यह विमर्श है भारतीय संविधान, कानून, और अपने नागरिकों की रक्षा का। जब देश में कोई विदेशी नागरिक वर्षों से रहकर न केवल संसाधनों का उपयोग करता है, बल्कि कभी आंदोलनकारी, कभी उग्रवादी और कभी "पीड़ित अल्पसंख्यक" बनकर राष्ट्र की रीढ़ पर वार करता है, तो यह विमर्श एक चेतावनी बन जाता है। आज का समय सजग रहने का है। यह जनसांख्यिकी युद्ध है, शस्त्रों का नहीं, पहचान का, नीति का, और राष्ट्र की चेतना का। समय आ गया है कि हम राष्ट्रहित में कड़े निर्णय लें, चाहे वे कितने भी असुविधाजनक क्यों न हों। क्योंकि राष्ट्र रहेगा, तभी मानवता बचेगी।
