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चैतन्य महाप्रभु का भक्ति आंदोलन और लोक-प्रतिरोध

2025-03-16  विप्लव विकास

 

Sri Chaitanya in Puri Jagannath Dhaam

हम सबने अपनी परंपरानुसार होली हर्षोल्लास से मनाई, और यह गर्व की बात है कि विश्वभर में भी हमारे उत्सव को सराहा गया। शुक्र है कि मीडिया की दो मिनट की डिबेट और नमाज-होली के विरोधाभासों के बावजूद, लोगो ने पानी की चिंता किए बिना  रंग खेला। उन सभी का धन्यवाद, जिन्होंने रंगों से परहेज नहीं किया और इस विमर्श को प्रेमपूर्ण दिशा दी। आखिरकार, हर उत्सव प्रेम और समरसता से ही सुंदर बनता है। किंतु इतिहास में ऐसे भी क्षण आए जब इस रंगों के उत्सव पर प्रतिबन्ध और अमानवीय अत्याचार का ग्रहण लगा। 15-16 वीं शताब्दी का बंग प्रदेश एक ऐसा ही दौर देख रहा था—धार्मिक असहिष्णुता, मजहबी आक्रमण और आस्था पर संकट। ऐसे कठिन समय में श्री चैतन्य महाप्रभु का आविर्भाव फाल्गुन पूर्णिमा तिथि को हुआ, जिसे यहाँ दोल या गौर पूर्णिमा कहा जाता है। । गौरांग महाप्रभु ने न केवल भक्ति आंदोलन को दिशा दी, बल्कि बंग प्रदेश में हिंदू समाज और संस्कृति की रक्षा भी की। इसी दिन दोल यात्रा और राधा-कृष्ण के प्रेम का उत्सव मनाया जाता है। महाप्रभु को राधा भाव से युक्त श्रीकृष्ण का अवतार माना जाता है। उनके आगमन से भक्ति आंदोलन को एक नई दिशा मिली।  

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गौरांग महाप्रभु ने श्रीकृष्ण भक्ति की ऐसी धारा प्रवाहित की जो जाति, पंथ और वर्ग के बंधनों से परे जन-जन को जोड़ने वाली थी। किंतु यह कार्य उतना सरल नहीं था जितना सुनने में लगता है। उस समय बंग में मुस्लिम शासकों का बोलबाला था। स्थानीय सुल्तान और अफसर मजहबी रूप से कट्टर थे। मंदिरों को नष्ट किया जा रहा था, हिंदू पर्वों को मनाने पर पाबंदियाँ लगाई जा रही थीं, और लोगों को उनकी परंपराओं से वंचित किया जा रहा था। होली, जो कि कृष्ण लीला से जुड़ा पर्व है और भक्ति भावना का उत्सव है, उन हमलों का एक प्रमुख लक्ष्य बन गई। सुल्तान ने सार्वजनिक भजन-कीर्तन, नृत्य और रंगोत्सव को विद्रोह का रूप माना। ऐसे में श्री चैतन्य महाप्रभु ने न केवल भक्ति का मार्ग दिखाया, बल्कि संकीर्तन को सांस्कृतिक अस्त्र बनाकर इन आक्रमणों का प्रतिकार किया। संकीर्तन आंदोलन उनका सबसे बड़ा अस्त्र था। यह केवल हरिनाम संकीर्तन नहीं था, बल्कि एक तरह का सामाजिक जागरण था। चैतन्य महाप्रभु ने अपने संकीर्तन आंदोलन के माध्यम से भक्ति की पुनर्स्थापना की और ‘हरे कृष्ण’ महामंत्र का प्रचार करके हिंदू समाज में एक नई ऊर्जा भरी। उनके नेतृत्व में हजारों भक्त सार्वजनिक रूप से नगर कीर्तन  निकालकर अपनी धार्मिक पहचान को पुनः स्थापित करने लगे, जो इस्लामी उत्पीड़न के खिलाफ एक हिन्दू प्रतिरोध का माध्यम बना। जब नवद्वीप में काजी ने कीर्तन और सार्वजनिक उत्सवों पर रोक लगाई, तब चैतन्य महाप्रभु ने हजारों भक्तों के साथ विशाल कीर्तन यात्रा के रूप में एक संगठित सविनय अवज्ञा आंदोलन की। ढोल-नगाड़ों, मृदंग और करताल के साथ हरिनाम की गूंज पूरे नगर में गूंज उठी। यह आंदोलन इतना प्रभावशाली था कि स्थानीय काज़ी, जो पहले कीर्तन पर रोक लगा रहा था, डर कर भविष्य में ऐसी पाबंदियाँ न लगाने की शपथ ली।  

 

 

 

 

Ananta Himalayas: HARIDAS THAKUR & CHAITANYA MAHAPRABHU

महप्रभु के जीवन में हरिदास ठाकुर का उल्लेख अनिवार्य है, जो जन्म से मुस्लिम होने के बावजूद कृष्णभक्त थे। इसके कारण उन्हें सार्वजनिक रूप से कोड़े मारे गए और कारावास में डाला गया, फिर भी उन्होंने कृष्ण-नाम का संकीर्तन नहीं छोड़ा।  महाप्रभु ने इस्लामी बलपूर्वक इस्लामीकरण  का प्रतिकार प्रेम और भक्ति से किया, जिससे कई मुस्लिम भी कृष्ण भक्ति की ओर आकर्षित हुए। जन्मना मुस्लिम हरिदास ठाकुर ने चैतन्य महाप्रभु के प्रभाव में आकर वैष्णव परंपरा को अपनाया और महान संत बने। श्री चैतन्य ने उन्हें ‘नामाचार्य’ की उपाधि देकर यह स्पष्ट किया कि कृष्ण-भक्ति सभी के लिए खुला मार्ग है।  

 

 

उड़ीसा में जगन्नाथ पुरी प्रवास के दौरान श्री चैतन्य महाप्रभु ने धार्मिक परंपराओं के संरक्षण में अहम भूमिका निभाई। उन्होंने होली, रथयात्रा और अन्य पर्वों को सार्वजनिक आध्यात्मिक महोत्सव का रूप देकर भक्ति आंदोलन को सशक्त किया। उस समय इस्लामी आक्रांताओं के बढ़ते प्रभाव से हिंदू आस्थाएँ संकट में थीं, लेकिन उनके प्रभाव से गजपति राजा प्रतापरुद्र ने मंदिरों की सुरक्षा को प्राथमिकता दी, जिससे तीर्थस्थलों की परंपराएँ सुरक्षित रहीं। श्रीचैतन्य ने वहां की जनता में ऐसा आत्मबल भरा कि वे पुनः अपने मंदिरों, उत्सवों और आस्थाओं को जीवित करने लगीं। होली का आयोजन पुरी में एक सामूहिक साधना बन गया।   

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आज जब भी हम अपने उत्सव पालन करें तब हमें अपने पुरुषार्थी और पराक्रमी पूर्वजों की विभिन्न मार्गों से ,समाज-संस्कृति और धर्म की रक्षा के संघर्ष को अवश्य स्मरण करना चाहिए। हम कृतज्ञता ज्ञापित करने वाली संस्कृति के उत्तराधिकारी हैं। चैतन्य महाप्रभु के भक्ति मार्गी प्रतिरोध ने आक्रांताओं से वर्तमान ओडिशा और अखंड बंग प्रदेश में हिन्दू परंपरा को संरक्षित और संवर्द्धित किया।  चैतन्य महाप्रभु ने कोई प्रत्यक्ष सैन्य प्रतिरोध नहीं किया, लेकिन उनका भक्ति आंदोलन इस्लामी दमन के विरुद्ध एक सशक्त आध्यात्मिक प्रतिकार था। उन्होंने जन-जागरण, धार्मिक पुनरुद्धार और अहिंसक तरीकों से हिंदू धर्म की रक्षा की। उनके प्रयासों से बंग प्रदेश और ओडिशा में बड़े पैमाने पर इस्लामीकरण और सांस्कृतिक क्षरण को रोका जा सका। उनके इस योगदान ने सुनिश्चित किया कि हिंदू धर्म इन क्षेत्रों में इस्लामी शासन के कई वर्षों के बावजूद जीवंत और मजबूत बना रहा। स्वामी युक्तानन्द जी ने उन्हें ‘पुरुषसिंह’ के रूप में प्रणाम किया है। होली या फाल्गुन पूर्णिमा की तिथि को हमें अपने इस गौरशाली व्यक्तित्व को स्मरण करना और आने वाली पीढ़ियों को यह बताना चाहिए कि जैसे श्री कृष्ण केवल वंशीधारी ही नहीं सुदर्शन चक्रधारी भी हैं वैसे ही हमारे महाप्रभु केवल ‘हरे कृष्ण’ का मन्त्र जप ही नहीं करते थे वरन इसे सबसे प्रभावी अस्त्र बनाकर तत्कालीन दमनकारी इस्लामी शासन के विरूद्ध हिन्दू प्रतिरोध भी खड़ा किया था। वामपंथ प्रायोजित इतिहास ने जिस सत्य को हमारी कई पीढ़ियों से छुपा  है या भ्रम उत्पन्न किया है उसके प्रतिकार का सर्वाधिक उपयुक्त उपाय सत्यान्वेषण और उचित अवसरों पर समोचित चर्चा है। श्रुत परंपरा से वेदों की थाती पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ती रही है तो सत्य इतिहास भी सौंपा जा सकता है। फाल्गुन पूर्णिमा को आविर्भूत चैतन्य महाप्रभु सत्यान्वेषण की इस साधना में भारत के साधु समाज को चैतन्यता और सशक्त इक्षाशक्ति प्रदान करें।     

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दैनिक स्वदेश में 16 मार्च 2025 को प्रकाशित।


 


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