वेलेंटाइन वीक के दौरान कार्यस्थलों, बाजारों, मॉल्स और सोशल मीडिया पर 7 से 14 फरवरी तक खासा उत्साह देखने को मिला। किशोरों से लेकर मध्यम आयु वर्ग तक की दीवानगी बढ़ती जा रही है। तथ्यों के विश्लेषण से स्पष्ट होता है कि पिछले डेढ़ दशक से यह प्रवृत्ति तेज हुई है, और पश्चिम से आई इस लहर ने भारत में गहरी पैठ बना ली है। ग्लोबल मार्केट फोर्सेज हमारी भावनाओं को व्यावसायिक रणनीतियों का हिस्सा बना लेती हैं। प्रेम और रोमांस का प्रतीक बनाया गया वैलेंटाइन डे केवल भावनात्मक अभिव्यक्ति नहीं, बल्कि एक सुनियोजित आर्थिक आयोजन है। चॉकलेट, टेडी बियर, ग्रीटिंग कार्ड से लेकर कंडोम तक, प्रत्येक दिन उपभोक्ताओं को खरीदारी के लिए प्रेरित करने के लिए डिजाइन किया गया है।
प्रेम का यह बाजारीकरण केवल उपभोक्तावाद को बढ़ावा नहीं देता बल्कि धीरे-धीरे प्रेम की परिभाषा को वासना और शारीरिक अंतरंगता की ओर मोड़ रहा है। यह परिवर्तन विशेष रूप से भारत जैसे देश के लिए चिंताजनक है, जहाँ प्रेम को आत्मिक संबंध और पवित्रता से जोड़ा गया है। बाजार के दबाव के चलते यह विचार थोप दिया गया है कि प्रेम को तभी सही तरीके से व्यक्त किया जा सकता है जब आप महंगे उपहार खरीदें या कोई विशेष वस्तु दें। अगर हम आंकड़ों की ओर देखें, तो स्पष्ट हो जाता है कि वैलेंटाइन डे केवल एक प्रेमाभिव्यक्ति नहीं बल्कि खरबों डॉलर का उद्योग बन चुका है। Statista के अनुसार, 2025 में अकेले अमेरिका में वैलेंटाइन डे पर खर्च होने वाली राशि 25.9 बिलियन डॉलर तक पहुँचने की उम्मीद है, जो 2010 के 14.1 बिलियन डॉलर से काफी अधिक है। भारत में भी, विशेषकर शहरी क्षेत्रों में, वैलेंटाइन से जुड़ी वस्तुओं की बिक्री में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।

वैलेंटाइन वीक पूरी तरह व्यावसायिक रणनीति का हिस्सा है। 7 फरवरी को रोज़ डे से इसकी शुरुआत होती है, जिससे फूलों की बिक्री 200-300% तक बढ़ जाती है। 8 फरवरी का प्रपोज़ डे ज्वेलरी और सगाई की अंगूठियों की बिक्री बढ़ाता है। 9 फरवरी का चॉकलेट डे वैश्विक बिक्री को 30-40% तक बढ़ा देता है। 10 फरवरी के टेडी डे पर सॉफ्ट टॉयज़ की मांग चरम पर होती है। हग डे, किस डे और प्रॉमिस डे भावनात्मक उपहारों व डेटिंग ऐप्स की लोकप्रियता बढ़ाते हैं। 14 फरवरी का वैलेंटाइन डे रेस्तरां, परिधान, पर्यटन और उपहार बाजार को बड़े पैमाने पर लाभ पहुंचाता है। इस पूरे सप्ताह के दौरान एक विशेष बात जो कम चर्चित होती है, वह है कंडोम की बिक्री में भारी वृद्धि। जहाँ गुलाब,चॉकलेट और ग्रीटिंग कार्ड को वैलेंटाइन के प्रतीक के रूप में दिखाया जाता है, वहीं कंडोम की बिक्री हर साल गुलाब की बिक्री से अधिक हो रही है। वैलेंटाइन सप्ताह में वैश्विक स्तर पर कंडोम की बिक्री सामान्य दिनों की तुलना में 30% तक बढ़ जाती है। और अंतर्राष्ट्रीय कंडोम दिवस भी इन लोगो ने 13 फरवरी ही रखा है। संभवतः अब आपको स्पष्ट हुआ होगा इन ग्लोबल मार्किट फोर्सेज की चाल। पहले शारीरिक अंतरंगता के लिए उकसाओ फिर कंडोम के उपयोग के लिए प्रेरित करो!! 2020 में, Snapdeal ने मात्र एक दिन में—14 फरवरी को—1.5 लाख कंडोम पैकेट बेचे, जो गुलाब की बिक्री से अधिक था। ये तो बस एक ऑनलाइन पोर्टल के आंकड़े है लाखों दवा की दुकानों और अन्य छोटे-बड़े पोर्टल्स के माध्यम से हुई कंडोम की बिक्री को जोड़ लें, तो युवा भारत के प्रेम की दिशा और स्वास्थ्य की स्थिति चिंतनीय लगने लगती है।
इसकी सीधी कड़ी यौन जनित बीमारियों (STDs) के बढ़ते मामलों से भी जुड़ी है। सीडीसी रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका में, 2015 से 2023 के बीच वैलेंटाइन वीक के बाद STDs के मामलों में 20% की वृद्धि दर्ज की गई । इसी तरह, यूनाइटेड किंगडम के नेशनल हेल्थ सर्वे ने पाया कि वैलेंटाइन वीक के बाद सेक्सुअली ट्रांसमिटेड इन्फेक्शन्स निक्स में मरीजों की संख्या 25% तक बढ़ जाती है। कई देशों में इस बढ़ते संकट से निपटने के लिए ‘सेफ सेक्स’ हेतु जागरूकता अभियान चलाए जा रहे हैं। साल 2023 में, थाईलैंड ने सुरक्षित संबंधों को प्रोत्साहित करने और किशोर गर्भावस्था व यौन संक्रामक रोगों जैसे सिफलिस, गोनोरिया, क्लैमाइडिया, एड्स और सर्वाइकल कैंसर से बचाव के लिए लगभग 9.5 करोड़ कंडोम वितरित किए।हमें सोचना होगा कि एक बाजार-निर्मित उत्सव, जो असंयमित और अनियंत्रित यौन प्रवृत्तियों को बढ़ावा देता है, उससे एक समाज के रूप में हम कैसे बचें। आप इस पर कुछ भी बोलेंगे तो ग्लोबल मार्किट फोर्सेज के एजेंट्स द्वारा प्रतिपादित नैरेटिव की शिकार हो सकते हैं कि आप प्रेम के विरोधी हैं।
भारतीय संस्कृति में प्रेम केवल शारीरिक आकर्षण नहीं, बल्कि समर्पण, त्याग और आत्मिक जुड़ाव का प्रतीक है। मदनोत्सव और वसंतोत्सव जैसे पर्व प्रेम को मानसिक व आध्यात्मिक मिलन के रूप में देखते हैं, जबकि वैलेंटाइन डे भौतिक उपहारों और व्यक्तिगत इच्छाओं पर केंद्रित है। मदनोत्स्व में संगीत, नृत्य और काव्य के माध्यम से प्रेम की पवित्र अभिव्यक्ति होती है, जबकि वसंतोत्सव प्रकृति और प्रेम की सुंदरता का प्रतीक है। प्रेम एक गहरी भावना है, जो भोगवाद और बाजारीकरण से परे है। भारत, जिसने कबीर, मीरा और राधा-कृष्ण जैसे शाश्वत प्रेम प्रतीक दिए हैं, उसे प्रेम को मात्र एक सप्ताह के दिखावे और खरीदारी तक सीमित नहीं करना चाहिए। क्या हमें ग्लोबल मार्केट फोर्सेज की प्रेम को पैकेजिंग और मार्केटिंग के द्वारा अपने व्यवसायिक लक्ष्यपूर्ति के लिए निर्मित वेलेंटाइन सप्ताह या प्रेम के नाम पर ‘वीकली सेल्स स्ट्रेटेजी’ का शिकार बनना चाहिए, या अपनी सांस्कृतिक जड़ों को बनाए रखते हुए प्रेम के शुद्ध और आध्यात्मिक स्वरूप को संजोना चाहिए? यह समय है कि हम वैलेंटाइन वीक जैसी बाजारी-निर्मिति से परे जाकर प्रेम के वास्तविक, आध्यात्मिक और शाश्वत स्वरूप को समझें और उसे अपनाएँ।
